प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
उत्तर-
प्राग्हड़प्पा संस्कृतियाँ धातु की दृष्टि से बहुत हीन हैं। ताम्र के प्रयोग के प्रमाण इतने थोड़े मिले हैं कि यह कहा जा सकता है कि उन्हें या तो स्थानीय अयस्क खानों का पता न था या प्राग्हड़प्पा संस्कृतियों का समाज पूरे समय धातुकर्म करने वाले लोहारों का निर्वाह नहीं कर सकता था। धातु उपकरणों के आधार पर विभिन्न सह-सम्बन्ध स्थापित करने के लिये पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं है। विविध प्रकार के धातु पात्रों से ज्ञात होता है कि उन्हें धसाने, उभाड़ने, जोड़ने आदि की तकनीकों का ज्ञान था। ताम्र-संचय व ताम्राश्मीय स्थलों से कोई भी धातु पात्र नहीं मिले हैं। सैंधव व ताम्राश्मीय शिल्प - उपकरणों से पता चलता है कि उनमें तापानुशीतन व धातु को ठंडी ठुकाई की तकनीक क्यों प्रयुक्त होती थी। तापानुशीतन संभवतः ताम्र संचय संस्कृति में प्रचलित न था। सैंधव सांकृति में लुप्त मोम की ढलाई की तकनीक भी प्रयुक्त हुई है, वैसे खुले साँचों का प्रयोग सामान्य था।
ताम्र संचय के मत्स्य काँटे और गूंगेरिया की कुल्हाड़ियों से बंद साँचों से ढलाई का आभास होता है। शुद्ध ताम्र की ढलाई के लिये बंद साँचों का प्रयोग एक कठिन तकनीक है। संभवत: टिन की कमी तथा धातु मिश्रण की कठिनाइयों के कारण ताम्र-संचय शुद्ध ताम्र के हैं। ताम्र-संचय तथा ताम्राश्मीय संस्कृतियों की अपेक्षा धातु की गढ़ाई की तकनीकें हड़प्पा संस्कृति में कहीं अधिक उन्नत हड़प्पा तथा ताम्राश्मीय दोनों ही संस्कृतियों में धातु मिश्रण का प्रयोग किया गया, जबकि ताम्र संचय से अभी तक कांस्य के निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं। धातु निर्मित उपकरणों के विशिष्ट सैंध व प्रकार हैं, उस्तरे बाणाग्र, मत्स्य काँटे, मुड़े हुये फलक संभवत: सर्वप्रथम आरी व नालीवाला बरमा उन्होंने ही तैयार किया। ताम्र-संचय के विभिन्न प्रकार हैं- मानवाकृति, श्रंगिकाकार तलवार और मत्स्य भालें। ताम्राश्मीय संस्कृति के प्रकार सामान्य है और ये अन्य संस्कृतियों में भी मिलते हैं। इनकी अपनी कोई विशिष्टता नहीं है। सैंधव, ताम्राश्मीय व ताम्र संचय संस्कृतियों को, उपर्युक्त विवेचन के आधार पर स्वतन्त्र समूहों में ही रखा जा सकता है। चंदौली की श्रंगिकाकार कटार व लोथल की मानवाकृति के तथाकथित सादृश्य की तकनीकी दृष्टि से इसमें कोई समानता नहीं थी।
धातु की बहुलता की दृष्टि से सैंधव सभ्यता के स्थल सबसे आगे हैं, तत्पश्चात ताम्र संचय और अंत में ताम्राश्मीय स्थल आते हैं। यद्यपि ताम्राश्मीय संस्कृति उपर्युक्त दोनों संस्कृतियों से धातु की दृष्टि से बहुत पिछड़ी है, पर दक्षिण की नवाश्मीय संस्कृतियों से कहीं आगे है। स्थान, काल, प्रकारात्मक वैभिन्य व धातुकर्म की दृष्टि से इन संस्कृतियों में कोई विशेष समानता नहीं है। संभवत: सैंधव के पश्चात् ताम्राश्मीय और फिर ताम्रसंचय संस्कृतियाँ विकसित हुयीं। इन संस्कृतियों का भौगोलिक क्षेत्र भी अलग-अलग है और परिस्थितियाँ भी सैंधव की धातु संपन्नता का मुख्य कारण अतिरिक्त कृषि उत्पादन तथा स्थानीय खानों की खोज थी। किसी भी समाज में अतिरिक्त उत्पादन के बिना धातुकर्मियों का जन्म संभव नहीं। सैंधव स्थलों से प्राप्त बड़ी संख्या में उपलब्ध सँकरी कुल्हाड़ियाँ और छेनियाँ कुदाल की भाँति प्रयोग की जा सकती थीं। चारों ओर से घिसे और चिकने बहुत से चर्ट फलक संभवत: लकड़ी पर लगाकर कुदाल की तरह प्रयोग किये जाते थे। अतिरिक्त कृषि उत्पादन से समृद्ध अर्थव्यवस्था, धातुकर्म का ज्ञान, धातु स्रोतों की बहुलता तथा अनुकूल पारिस्थितिकी के फलस्वरूप ही सिंध की घाटी में सैंधव नागरीकरण का इतनी तेजी से विकास हुआ। ताम्र-संचय लोगों को भी धातुकर्म का ज्ञान था तथा धातु की बहुलता भी थी। इनकी अन्य संस्कृतियों से पृथकता तथा विशिष्टता इनके धातुकर्म के स्वतन्त्र विकास की सूचक है।
दूसरी ओर जंगलों से भरा हुआ पठार व धातु की विद्यमानता धातुकर्म के अनुकूल थी, पर यहाँ की पारिस्थितिकी नागरीकरण में सहायक न हो सकी। उनके हथियार अंगिकाकार तलवार, मानवाकृति व मत्स्य भाले मानसूनी घने जंगल व नदियों में शिकार जीवन के अनुकूल ही थे। उनके धातुकर्म से यह बात ज्ञात होती है कि उनके समाज में यह कार्य घुमक्कड़ लोहारों द्वारा ही, जो कि अपने कबीले के बंधनों को तोड़कर मुक्त हो गये थे, सम्पन्न किया जाता था। धातु की बाहुलता के होते हुये भी एक भी पात्र का न मिलना उनके बेहतर जीवन का ही द्योतक है। इसके साथ ही उनके स्थलों से आबादी के टीलों का न मिलना भी इस मत की पुष्टि करता है। दोआब का उपनिवेशीकरण कालान्तर में लौह तकनीक के ज्ञान तथा प्रचुर मात्रा में लोहे की प्राप्ति द्वारा ही संभव हुआ। ताम्र की अपेक्षा लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है। ताम्राश्मीय संस्कृतियों का धातुकर्मी विकास, संभवत: परिस्थितिकी के प्रभाव और अयस्कों की न्यूनता के कारण न हो सका। सँकरी गादयुक्त जलोढ़ पट्टियों से अतिरिक्त उत्पादन इतना नहीं हो सकता था कि वे धातु कर्मियों व अन्य कारीगरों का निर्वाह कर सकते, न नागरीकरण के लिये यह पर्याप्त ही था।
इसी कारण ताम्र संचय व अन्य संस्कृतियों के मध्य धातु उपकरणों के वाह्य रूप के आधार पर संबंध स्थापित करने के प्रयास तर्कपूर्ण नहीं लगते। ताम्र संचय हमारे देश के पुरैतिहासिक काल की एक अपूर्व व संभवतः स्वतन्त्र संस्कृति है। चित्रित धूसर मृद्भाण्ड संस्कृति के लोगों द्वारा लौह उपकरणों के उपयोग से दोआब के जंगलों के साफ होने से पूर्व, संभवत: यह दोआब के जटिल व घने जंगलों की आदि जातियों की संस्कृति थी। छोटा नागपुर का पठार ताम्र अयस्कों से भरपूर व जंगलों से आच्छादित था। अतः वहाँ स्वतंत्र धातु शिल्प का उद्भव दो सहस्र ई. पू. भी संभव था। घने जंगलों की पारिस्थितीय रुकावटों के कारण ही दोआब की यह संस्कृति अन्य पश्चिमी संस्कृतियों के सम्पर्क में शायद नहीं आ पायी।
लाल जी के अनुसार स्कंधयुक्त कुल्हाड़ियाँ हड़प्पा संस्कृति में प्राप्त नहीं हुई। प्राप्त प्रमाणों के अनुसार अग्रवाल का मत है कि चपटे व स्कंधयुक्त प्रकारों में कोई गुणात्मक अंतर नहीं है। कुछ सैंध वों के उदाहरण वस्तुतः स्कंधयुक्त कहे जा सकते हैं। अग्रवाल के मतानुसार, चपटी और स्कंधयुक्त कुल्हाड़ियाँ बहुत सादे प्रकार की होने के कारण सर्वव्यापी हैं। अतः ये किसी एक संस्कृति की विशिष्टता नहीं कही जा सकती। द्विमुखी कुल्हाड़ियाँ केवल उड़ीसा में भागरापीर से ही मिली है। ये एक अंडाकार चादर से गोलाकार टुकड़े काट कर बनायी जाती थीं। इस कारण इसका विशिष्ट आकार है। इतने बड़े आकार के इतने पतले हथियार के कुल्हाड़े की भाँति प्रयोग करने पर यह मुड़ जाता। अतः इन्हें कुल्हाड़ियाँ कहना गलत ही होगा। ये संभवत: भूमि अनुदान करने के पट्टों की तरह प्रयुक्त हुये होंगे।
परन्तु लोथल व दोआब के नमूनों में भिन्नता देखने को मिलती है। मत्स्य भाले, रीढ़दार, भालाग्र की तरह हैं, जिसमें मुड़े काँटे लगे हों। इनकी मूठ पर प्रायः छेद होता है। ये दो प्रकार के हैं। पहला प्रकार है- मोटी चादर से काटकर हथौड़ियाकर बनाये हुए, द्वितीय दोहरे साँचे में ढाले हुए। दूसरे की अपेक्षा प्रथम नमूने अधिक आदिम व भद्दे लगते हैं। स्तरीय प्रमाण ही यह निश्चित कर सकते हैं कि काटे हुए नमूने ढाले हुये प्रतिरूपों के पूर्वगामी हैं या नहीं। द्वितीय प्रकार के नमूने शिल्प कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इन उदाहरणों को विशिष्टाओं की सूची में रखा जा सकता है।
|
- प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
- प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
- प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
- प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
- प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
- प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
- प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
- प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
- प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
- प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
- प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
- प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
- प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
- प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
- प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
- प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
- प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
- प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
- प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
- प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
- प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
- प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
- प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
- प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
- प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
- प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
- प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।